रागवश रमणीय रूप देखने का अभिप्राय होना दर्शन-क्रिया है।
श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं में से पहली का नाम दर्शन प्रतिमा है। जो संसार शरीर और भोगों से विरक्त हो, जिसका सम्यग्दर्शन निर्मल हो, जिसे पंच परमेष्ठि के चरणों की शरण हो तथा जो व्रतों के मार्ग में आठ मूल …
‘दर्शन’ का अर्थ सम्यग्दर्शन है। उसकी विशुद्धता या निर्मलता का नाम दर्शनविशुद्धि है। जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे गए निर्ग्रन्थ मोक्ष मार्ग में रुचि और निशंकित आदि आठ अंग सहित होना सो दर्शनविशुद्धि है। इस प्रकार दर्शनविशुद्धि भावना से जीव तीर्थंकर …