निःशंकित आदि आठ अंग युक्त सम्यग्दर्शन का पालन करना अर्थात् उस रूप आचरण करना दर्शनाचार कहलाता है।
जो चक्षु इन्द्रिय से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे चक्षु दर्शनावरणीय कहते हैं जो चक्षु इन्द्रिय के सिवाय शेष इन्द्रियों ओर मन से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभास को प्रकट …