कई वादियों ने अन्य समस्त वादियों के अन्य नय पक्षों का निराकण करके केवल दर्शन से ही मुक्ति कही गई है। यह मिथ्या श्रद्धान या दर्शनवाद है। ज्ञान क्रिया और श्रद्धा मिलकर ही प्रयोजनवान् हैं, यह सम्यक श्रद्धान है या …
‘दर्शन’ का अर्थ सम्यग्दर्शन है। उसकी विशुद्धता या निर्मलता का नाम दर्शनविशुद्धि है। जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे गए निर्ग्रन्थ मोक्ष मार्ग में रुचि और निशंकित आदि आठ अंग सहित होना सो दर्शनविशुद्धि है। इस प्रकार दर्शनविशुद्धि भावना से जीव तीर्थंकर …