देखिये अग्नि ।
आगम में आचार्य परंपरागत उपदेशों को ऋजु और सरल होने के कारण दक्षिण प्रतिपत्ति कहा गया है। धवलाकार श्री वीरषेण स्वामी इसकी प्रधानता देते है।
जिसकी अपने विष्ष्कंभ से कुछ अधिक तिगुनी परिधि है। ऐसे पूर्व शरीर के बाहुल्य रूप अथवा पूर्व शरीर से तिगुने बाहुल्य रूप दण्ड आकार से केवली के जीव प्रदेशों का कुछ कम चौदह राजू उत्षेध रूप फैलने का नाम दण्ड …