जिनके स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रियां होती हैं वे त्रीन्द्रिय जीव कहलाते हैं। जैसे- चींटी आदि ।
गर्भान्वय, दीक्षान्वय और कर्तृन्वय इस प्रकार विद्वानों ने तीन प्रकार की क्रियायें मानी हैं। गर्भान्वय क्रियायें 53, दीक्षान्वय क्रियायें 48, कर्तृन्वय क्रियायें 7 संग्रह की हैं। 1. गर्भाधान, 2. प्रीति, 3. सुप्रीति, 4. धृति, 5 मोद, 6. प्रमोदभव, 7. नामकर्म, …
गोशाल के द्वारा प्रवृत्त पाखण्डी आजीवक और त्रैराशिक कहलाते हैं। क्योंकि वे सभी वस्तुओं को त्रियात्मक मानते हैं।