दाता के द्वारा दिए गए आहार में से यदि साधु बहुत सा आहार नीचे गिराते हुए आहार ग्रहण करें या अधिक मात्रा में दूध आदि अंजलि में से झरता हो तो यह त्यक्त नाम का दोष है।
त्यक्त शरीर तीन प्रकार का है। प्रायोगमन विधि से छोड़ा गया, इंगिनी मरण विधान से, भक्तप्रत्यख्यान विधान से ।
1. निज शुद्धात्मा को ग्रहण करके बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह की निवृत्ति करना त्याग है। त्याग दो प्रकार का है- बाह्य उपाधि का त्याग और आभ्यन्तर उपाधि का त्याग । आत्मा से भिन्न ऐसे वास्तु, धन, धान्य आदि बाह्य उपाधि …
जिस कर्म के उदय से जीव द्वीन्द्रिय आदि में जन्म लेता है, उसे त्रस- नामकर्म कहते हैं ।