Coboid. तिर्यक् प्रचय : देखे क्रम में ।
मेरूपर्वत की जितनी ऊँचाई है उतना मोटा और तिरछा फैला हुआ तिर्यग्लोक है मेरू पर्वत के मूल से एक लाख योजन बाहल्य रूप राजु प्रतर अर्थात् एक राजू लम्बे चौड़े क्षेत्र में तिर्यग्लोक स्थित है चूँकि स्वम्भूरमण पर्यन्त असंख्यात द्वीप …
तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु तीन पल्य व जघन्यायु अन्तर्मुहूर्त होती है। तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु (तीन पल्य) भोगभूमि, स्वयंभूरमण द्वीप, व कर्मभूमि के प्रथम चार कालों में ही सम्भव है। धर्मोपदेश में मिथ्या बातों को मिलाकर उनका प्रचार करना, शीलरहित …