1. जिस कर्म के उदय से अपने दोषों का संवरण(ढंकना) और दूसरे के दोषों का आविष्करण (प्रगट करना) होता है, वह जुगुप्सा है अथवा अपने दोषों को ढांकना जुगुप्सा है तथा दूसरे के कुल शील है आदि में दोष लगाना, …
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