आयु के प्रमाण का नाम जीवन है । अथवा आयु कर्म के उदय से भव – स्थिति को धारण करने वाले जीव के प्राणापान क्रिया (श्वांसोच्छ्वास) का विच्छेद नही होना जीवन है।
जो जन्म-मरण से मुक्त हो गए हैं परन्तु अभी समस्त कर्मों से मुक्त नहीं हुए, ऐसे अर्हन्त भगवान जीवन्मुक्त कहलाते हैं। भाव मोक्ष, केवलज्ञान की उत्पत्ति, जीवन्मुक्त और अर्हन्त पद ये सब एकार्थवाची है।