जिसके चेतना है वह जीव है अथवा जो दस प्राणों में से अपनी पर्याय के अनुसार यथायोग्य प्राणों के द्वारा जीता है, जीता था और जीएगा त्रैकालिक जीवन गुण वाले को जीव कहते है। जीव, प्राणी, भूत, सत्व, जन्तु, पुरुष, …
जिन कर्मों का विपाक अर्थात् फल मुख्यतः जीव में होता है वे जीवविपाकी कर्म कहलाते हैं। इन कर्मों के उदय से जीव के ज्ञान-दर्शन आदि गुण ढक जाते हैं। जीव विपाकी कर्म प्रकृत्तियाँ 78 हैं। घातिया कर्म की सभी 47 …