अर्हन्त अवस्था में तो समवसरण में सर्व सभाजनों को चारों ही दिशाओं में उनका मुख दिखाई देता है इसलिए तथा सिद्धावस्था में सर्वत्र सर्व दिशाओं में देखने के स्वभाव वाले होने के कारण भगवान् का नाम चतुर्मुख है।
राजाओं द्वारा जो सर्व कल्याणकारी महायज्ञ किया जाता है उसे चतुर्मुखपूजा कहते हैं। इसे सर्वतोभद्र पूजा भी कहते हैं।
मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका इन चारों के समुदाय को चतुर्विध संघ कहते हैं।
जिसमें चौबीस तीर्थंकरों की वंदना करने की विधि, उनके नाम, संस्थान, ऊँचाई, पाँच कल्याणक, चौंतीस अतिशयों के स्वरूप और वंदना की सफलता का वर्णन किया गया है, वह चतुर्विंशतिस्तव नाम का अंग बाह्य कहलाता है।