घोष अर्थात् द्रव्यानुयोग द्वार के साथ रहता है अर्थात् उत्पन्न होता है इस कारण अनुयोग श्रुतज्ञान घोषसम कहलाता है।
जिसके द्वारा संसारी जीव गंध का ज्ञान करते हैं उसे घ्राण- इन्द्रिय कहते हैं। तीनइन्द्रिय, चारइन्द्रिय, पाँच इन्द्रिय जीवों में घ्राण इन्द्रिय (गंध) का उत्कृष्ट क्षेत्र क्रमश: 100, 200, 400 धनुष व 109 योजन है।