जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अनुपम तप करते हुए तीन लोक के संहार की शक्ति से संपन्न और सहसा समुद्र के जल को सुखा देने की सामर्थ्य से युक्त होते हैं वह घोर पराक्रम-तप- ऋद्धि है।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु सब गुणों से संपन्न होकर अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उसे घोर – ब्रह्मचर्य-तप ऋद्धि कहते हैं। इसके प्रभाव से साधु के समीप चौरादिक की बाधाएँ और महायुद्ध नहीं होते।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से ज्वर आदि से पीड़ित होने पर भी साधु अत्यन्त कठिन तप करने में सक्षम होते हैं वह घोर तप – ऋद्धि कहलाती है।