जैनेश्वरी दीक्षा लेकर एवं भगवान की दिव्य ध्वनि को धारण करने में समर्थ हैं और लोक-कल्याण के लिए वाणी का सार द्वादशांग के रूप में जगत को प्रदान करते हैं, ऐसे महामुनीश्वर ‘गणधर’ कहलाते हैं। प्राप्त ऋद्धियों के बल से …
1. जघन्य परीतासंख्यात- संख्येय प्रमाण के ज्ञान के लिए जम्बूद्वीप के समान एक लाख लम्बे-चौड़े और एक योजन गहरे शलाका, प्रतिशलाका, महाशलाका और अनवस्थित नाम के कुण्ड बुद्धि से कल्पित करने चाहिए। अनवस्थित कुण्ड में दो सरसों डालने चाहिए, फिर …
दीक्षा व शिक्षा के उपरान्त निश्चय व्यवहार मोक्षमार्ग में स्थित होकर जिज्ञासु भव्य प्राणी गणों का परमात्म उपदेश द्वारा पोषण करना गणपोषण काल है।