ग्राह्यग्राहक लक्षण वाले सम्बन्ध की निकटता के कारण भावेन्द्रियों के द्वारा (ग्राहक ) ग्रहण किये हुए, इन्द्रियों के विषयभूत स्पर्शादि पदार्थों को (ग्राह्य पदार्थों को) ज्ञेय (बाह्य पदार्थ) ज्ञायक (जानने वाला) आत्मा संकर नामक दोष है।
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