जिस ऋद्धि के प्रभाव से वज्र से भी गुरुतर अर्थात् भारी शरीर बनाया जा सके उसे गरिमा – ऋद्धि कहते हैं।
जिस किसी भी प्रकार से गड्ढा भरने की तरह साधु स्वादिष्ट या अस्वादिष्ट अन्न जल के द्वारा पेट रूपी गड्ढे को भर देते हैं, इसलिए साधु की यह आहार चर्या गर्तपूरण या स्वभ्रभरण-वृत्ति कहलाती है।
तीर्थंकरों के गर्भ में आने पर होने वाले उत्सव को गर्भ कल्याणक कहते हैं। तीर्थंकर के गर्भ में आने से छह मास पूर्व से लेकर जन्म पर्यन्त पन्द्रह मास तक उनके जन्म स्थान में कुबेर द्वारा प्रतिदिन तीन बार, साढ़े …