जो सूँघा जाता है अथवा सूँघने मात्र को गन्ध कहते हैं। सुगन्ध और दुर्गन्ध के भेद से वह दो प्रकार का है। ये दो तो मूल भेद हैं, वैसे प्रत्येक के संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद होते हैं ।
जिस नामकर्म के उदय से जीव के शरीर में अपनी जाति के अनुरूप गंध उत्पन्न होती है, उसे गंध-नामकर्म कहते हैं । यह दो प्रकार का हैसुरभि-गंध और दुरभि – गंध नामकर्म।
समवसरण के मध्य तीर्थंकर भगवान के बैठने का स्थान गंधकुटी कहलाता है। इसके मध्य में अत्यन्त मनोहर सिंहासन होता है। जिस पर स्थित कमल के ऊपर भगवान अंतरिक्ष में विराजमान होते हैं। समवसरण की दिव्य भूमि स्वाभाविक भूमि से एक …