समस्त आवरण के अत्यन्त क्षय से आत्मा ही मूर्त–अमूर्त द्रव्य को सकल रूप से जो सामान्यतः अवबोध करता है, वह स्वाभाविक केवलदर्शन है। चन्द्र, सूर्य आदि का प्रकाश तो परिमित क्षेत्र में ही पाया जाता है, किन्तु केवलदर्शन का प्रकाश …
जिस कर्म के उदय से आत्मा में केवलज्ञान के साथ-साथ होने वाला सामान्य प्रतिभास रूप केवलदर्शन प्रकट नहीं हो पाता उसे केवलदर्शनावरण कर्म कहते हैं ।