खोटे मनुष्यों को चाहने के कारण से किंनर यह संज्ञा क्यों नहीं मानते ? यह देवों का अवर्णवाद है । यह पवित्र वैक्रियिक शरीर के धारक होते हैं, वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीर वाले मनुष्य आदि की कामना नहीं …
श्रुतज्ञान में, केवलियों में, धर्म में तथा आचार्य, उपाध्याय, साधु में दोषारोपण करने वाले और उनकी दिखावटी भक्ति करने वाला मायावी तथा अवर्णवादी कहलाता है। ऐसे अशुभ विचारों से मुनि किल्विष जाति के देवों में उत्पन्न होता है और इन्द्र …