स्त्री पुरुष के परस्पर संयोग की अभिलाषा ‘काम’ है। स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों के विषय अर्थात् रस और स्पर्श काम हैं और गन्ध, रूप व शब्द ये तीन भोग हैं।
कामसेवन करना काम पुरुषार्थ है। कामपुरुषार्थ अशुभ है। कामपुरुषार्थ अपवित्र शरीर से उत्पन्न होता है। इससे आत्मा हल्की होती है। इसके सेवा से आत्मा दुर्गति में दुःख पाती है। यह पुरुषार्थ अल्प काल में ही उत्पन्न होकर नष्ट होता है …