जिसमें सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारागणों के गमन- क्षेत्र, उपपाद – स्थान, अनुकूल-प्रतिकूल गति तथा उसके फल का, पक्षियों के शब्दों का एवं तीर्थंकर के पंच कल्याणकों का वर्णन किया गया है, वह कल्याणवादद- पूर्व नाम का ग्यारहवाँ पूर्व …
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