जीव के जो भाव कर्म के उदय से उत्पन्न होते हैं वह औदयिक – भाव कहलाते हैं । औदयिक – भाव इक्कीस हैं- चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयम, एक असिद्ध भाव और छह …
औदारिक शरीर द्वारा उत्पन्न हुई शक्ति से जीव के प्रदेशों में परिस्पंदन का कारणभूत जो प्रयत्न होता है उसे औदारिक काय योग कहते हैं अथवा औदारिक शरीर के निमित्त से आत्म प्रदेशों में कर्म नो कर्म ग्रहण करने की जो …
औदारिक शरीर की उत्पत्ति प्रारम्भ होने के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त तक मध्यवर्ती काल में जो अपरिपूर्ण शरीर है उसे औदारिक मिश्र जानना चाहिए। उसके द्वारा होने वाला जो संप्रयोग है वह औदारिक मिश्रकाययोग है अर्थात् शरीर पर्याप्ति पूर्ण …
उदार या स्थूल शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं। जो शरीर गर्भजन्म से या सम्मूर्नि जन्म से उत्पन्न होता है वह औदारिक शरीर है। तिर्यंच और मनुष्यों के औदारिक शरीर होता है।