अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य इनका नाम एषणा है।
याचक वृत्ति से रहित होकर प्रासुक आहार की गवेषणा करना भिक्षा शुद्धि या एषणा शुद्धि है।
उद्गमादि दोषों से रहित निर्दोष और प्रासुक आहार समभावपूर्वक ग्रहण करना एषणा समिति है यह साधू का एक मूलगुण है।
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