एकाकी विचरण करने वाले साधु को एकल-विहारी कहते हैं। पंचम काल में दीक्षा धारण करके अकेले रहना या अकेले विहार करना साधु के लिए प्रशंसनीय नहीं है । तपोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, आचार कुशल, उत्तम संहनन के धारी, धैर्यवान विशिष्ट साधु को …
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