एकान्त रूप से अस्तित्व मानने पर जो दोष नास्तित्व स्वभाव रूप आता है अथवा नास्त्विरूप मानने पर जो दोष अस्त्विभावस्वरूप आता है, वे एकान्तवादियों के ऊपर आने वाले दोष अनेकान्त को मानने वाले जैन के यहाँ भी प्राप्त हो जाते …
सूत्र को अक्षर और अर्थ दोनों रूप से शुद्ध व सावधानी से पढ़ना-पढ़ाना उभय शुद्धि हैं। इसे तदुभय भी कहते हैं। यह ज्ञानाचार का एक अंग है।
बहुत समय से सील बंद करके रखी गई घी-शक्कर आदि आहार सामग्री साधु के आने पर तुरंत खोलकर देना उभिन्न नाम का दोष है।