उपात्त इन्द्रियाँ व मन तथा अनुपात्त प्रकाश उपदेशादि पर है पर की अपेक्षा से होने वाला ज्ञान परोक्ष है। आत्मा के रागादि परिणामों से कर्म और रूप में जिन पुद्गल द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है। वे उपात्त पुद्गल द्रव्य …
किसी कार्य के होने में जो स्वयं उस कार्य रूप परिणमन करे, वह उपादान कारण कहलाता है। जैसे- रोटी के बनने में गीला आटा उपादान- कारण है।
उपाधि शब्द का अर्थ माया होता है गुप्त रीति से मायाचार में प्रवृत्ति करना, दाता के घर का शोध करके अन्य मुनि के जाने से पूर्व में वहाँ आहारार्थ प्रवेश करना अथवा किसी कार्य के निमित्त से दूसरे नहीं जा …