भोगी जा सकती है उसे उपभोग कहते हैं। जैसे- वस्त्र – आभूषण, वाहन, आवास आदि ।
जिस कर्म के उदय से जीव वस्त्र, आभूषण आदि उपभोग की इच्छा करता हुआ भी उपभोग नहीं कर सकता उसे उपभोगान्तराय कर्म कहते हैं।
जिस कर्म के उदय से जीव वस्त्र, आभूषण आदि उपभोग की इच्छा करता हुआ भी उपभोग नहीं कर सकता उसे उपभोगान्तराय कर्म कहते हैं।
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