उपदेश दो प्रकार का है धर्मोपदेश व मिथ्योपदेश। लौकिक ख्याति लाभ आदि फल की आकांक्षा के बिना मिथ्यामार्ग से बचाने के लिए, संदेह करने के लिए तथा अपूर्व अर्थात् प्रयोजनभूत दूर अपरिचित पदार्थ के प्रकाशन के लिए धर्मकथा करना धर्मोपदेश …
तीर्थंकर आदि महापुरुषों के जीवन चरित्र को सुनकर जो सम्यग्दर्शन होता है उसे उपदेश- सम्यक्त्व कहते हैं ।