आहार करते समय साधु के उदर से किसी रोग वश कृमि आदि निकल आने पर उदरक्रिमिनिर्गम नाम का अन्तराय होता है।
जैसे अपने घर में लगी अग्नि को गृहस्वामी किसी भी प्रकार बुझाने का प्रयत्न करता है उसी प्रकार साधु भी सरस या नीरस ऐसा भेद किए बिना श्रावक के द्वारा दिए गए प्रासुक आहार से उदराग्नि को शान्त करता है …