आठ जौ का एक अंगुल होता है वही उत्सेधांगुल, व्यवहारांगुल या सूच्यंगुल कहलाता है। इस उत्सेधांगुल से देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारकियों के शरीर की ऊँचाई का प्रमाण और देवों के निवास स्थान व नगरादि का प्रमाण जाना जाता है।
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