वन्दना को थोड़ी ही देर में समाप्त करके उसकी चूलिका रूप आलोचनादि को अधिक समय तक करना उत्तरचूलिका दोष है।
मीमांसा दर्शन के तीन भेद हैं- पूर्व मीमांसा, मध्यमीमांसा और उत्तर मीमांसा। यह वैशेषिक मान्य भेदभाव को धीरे-धीरे अभेद की ओर ले जाते हैं। अंतिम भूमि के प्राप्त होने पर वह इतना कहने के लिए समर्थ हो जाता है कि …
उत्तर, अनृजु और आचार्य परम्परा से अनागत ये तीनों एकार्थवाची हैं। आगम में आचार्य परम्परागत उपदेशों से बाहर की जिन श्रुतियों का उल्लेख मिलता है वह अनृजु होने के कारण उत्तरप्रतिपत्ति कही गई है। धवलाकार श्री वीरसेन स्वामी इसको प्रधानता …
जिसमें अनेक प्रकार के उत्तरों का वर्णन है जैसे- चार प्रकार के उपसर्ग कैसे सहन करना चाहिए? बाईस प्रकार के परीषह सहन करने की विधि क्या है ? इत्यादि प्रश्नों के उत्तर का वर्णन किया गया है वह उत्तराध्ययन है।