घर, परिवार और शरीर से भी ममता रहित मुनिजन स्नानादि संस्कार नहीं करते तथा रोगादि उत्पन्न होने पर भी चारित्र में दृढ़ रहकर पीड़ा को सहन कर लेते हैं परन्तु शरीर का उपचार करने की इच्छा नहीं करते, यह उज्झण …
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