जिससे साधु को सारे जगत पर प्रभुत्व करने की शक्ति प्राप्त हो वह ईशित्व-ऋद्धि हैं।
ईश्वर नय से परतन्त्रता भोगने वाला है। धाय की दुकान पर दूध पिलाये जाने वाले राहगीर के बालक की भांति । अनीश्वर नय से स्वतन्त्रता भोगने वाला है। हिरण के स्वच्छन्दता पूर्वक फाड़कर खा जाने वाले सिंह की भांति ।
सिद्ध भूमि ईषत्प्राग्भार पृथ्वी के ऊपर स्थित है। एक योजन से कुछ कम है। ऐसे निष्कम व स्थिर स्थान में प्राप्त होकर तिष्ठते हैं। सर्वार्थ सिद्धि इन्द्र के ध्वजदण्ड से 12 योजन मात्र ऊपर जाकर आठवीं पृथ्वी स्थित है। उसके …