आहारक शरीर की उत्पत्ति प्रारम्भ होने के प्रथम समय से लगाकर शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने तक अन्तर्मुहूर्त के अपरिपूर्ण शरीर को आहारक मिश्रकाय कहते हैं । उस आहारक मिश्रकाय के द्वारा जो योग उत्पन्न होता है वह आहारक मिश्र काय …
सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान करने के लिए या असंयम को दूर करने की इच्छा से प्रमत्त-संयत (मुनि) जिस शरीर की रचना करता है वह आहारक शरीर है। आहारक शरीर न तो किसी को बाधित करता है न ही किसी से …
सूक्ष्म पदार्थ के विषय में जिनको कुछ जिज्ञासा उत्पन्न हुई है उन परम ऋषि के मस्तक में से मूल शरीर को न छोड़ते हुए जो एक हाथ ऊँचा, हंस के समान धवल, सर्वांग संदर पुरुषाकार शरीर निकलकर अन्तर्मुहूर्त में जहाँ …
सूर्य के उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी (72 मिनिट) छोड़कर मध्यकाल में एक, दो या तीन मुहूर्त (48 मि.) काल में एक बार अन्न-जल ग्रहण करना यह साधु की आहारचर्या है। सद्गृहस्थ के द्वारा निर्दोष विधि से भक्तिपूर्वक दिये …