आकांक्षा अथवा अभिलाषा को आशंसा कहते हैं। न्यायानुसार इन्द्रियों के विषयों की अभिलाषा के सिवाय कभी भी ( अन्य कोई इच्छा ) अभिलाषा नहीं कहलाती । इच्छा के बिना क्रिया के न मानने से क्षीण कषाय और उसके समीप के …
जिस ऋद्धि के प्रभाव से दुष्कर तप से युक्त मुनि के द्वारा कहे गए वचन जीव के हित या अहित में निमित्त बन जाते हैं वह आशीर्विष रस ऋद्धि है। ।