जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु, जीवों को बाधा न पहुंचे इस तरह चलते हुए भूमि से चार अंगुल ऊपर आकाश में गमन कर सकते हैं, उसे आकाश – चारण ऋद्धि कहते हैं।
जो समस्त द्रव्यों को अवकाश अर्थात् स्थान दे वह आकाश द्रव्य है। यह सर्वव्यापी अखण्ड और अमूर्त द्रव्य है आकाश द्रव्य दो प्रकार का हैलोकाकाश और अलोकाकाश । जिसमें जीव आदि पदार्थ देखे जाते हैं अर्थात् उपलब्ध होते हैं उसे …
वनस्पति नामकर्म का जिस जीव के उदय है। वह जीव और पुद्गल का समुदाय पुष्प कहा जाता है। जिस प्रकार वृक्ष के द्वारा व्याप्त होने पर वह पुष्प पुद्गल वृक्ष का कहा जाता है उसी प्रकार आकाश के द्वारा व्याप्त …
आकाश में गमन करने की विद्या एवं जप तप आदि का वर्णन करने वाली चूलिका को आकाशगता चूलिका कहते हैं |
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु सुखासन से बैठे-बैठे या खड़े होकर बिना डग भरे आकाश में गमन कर सकते हैं उसे आकाशगामित्व ऋद्धि कहते हैं।