परिताप (संताप) के कारण जो आँसू गिरने के साथ विलाप आदि होता है उससे खुलकर रोना आक्रन्दन कहलाता है। यह असाता वेदनीय के आस्रव का कारण है।
क्रोध बढ़ाने वाले, अत्यन्त अपमानजनक, कर्कश और निन्दनीय वचनों को सुन कर जो साधु विचलित नहीं होते और प्रतिकार करने में समर्थ होते हुए भी उसे शान्त-भाव से सहन करते हैं और मन में कषाय – भाव नहीं आने देते …