स्वभाववाद
कांटे को आदि लेकर जो तीक्ष्ण वस्तु है। उनके तीक्ष्णपना कौन करता है तथा मृग ओर पक्षी आदिकों के अनेकपना कौन करता है। इस प्रश्न का उत्तर मिलता है कि सबमें स्वभाव ही है। ऐसे सबको कारण के बिना स्वभाव से ही मानना (मिथ्या) स्वभाववाद का अर्थ है। ज्ञान वास्तव में जीव का स्वरूप है। इस हेतु से जो अखण्ड अद्वैत स्वभाव में लीन हैं जो निरतिशय परम भावना सहित है। जो मुक्ति सुंदरी का नाथ है और बाह्य में जिसने कौतूहल व्यावृत्त किया है ऐसे निज परमात्मा को कोई आत्मा भव्य जीव जानता है। ऐसा वास्तव में (निश्चय ) स्वभाववाद है।