सूतक
लोक व्यवहार में जन्म-मरण के निमित्त से हुई अशुद्धि के शोधन को सूतक कहते हैं। मरण के निमित्त से होने वाले सूतक का काल तीन पीढ़ी तक बारह दिन, चौथी पीढ़ी में दस दिन, पाँचवी पीढ़ी में छह दिन, छठवी पीढ़ी में चार दिन और सातवीं पीढ़ी में मात्र तीन दिन का माना जाता है। एक माह तक के बालक के मरण का सूतक मात्र एक दिन का, आठ वर्ष तक के बालक के मरण का तीन दिन का, तीन माह तक का गर्भपात हो तो तीन दिन का और इसके पश्चात् जितने माह का गर्भपात हो उतने-उतने दिन का सूतक होता है। गृहत्यागी व सन्यासी के मरण का मात्र एक दिन का सूतक है। परदेश में किसी गृहस्थ का मरण हो तो सूचना मिलने के बाद (12 दिन में से) शेष जितने दिन बचे हो उतने दिन का सूतक होता है। आत्मघात करने वालों के परिवार में छह माह तक का सूतक होता है। जन्म के निमित्त होने वाला सूतक चार पीढ़ी तक दस दिन का तथा पाँचवी छठवी और सातवीं पीढ़ी में क्रमशः छह, चार और तीन दिन का होता है। घर में पालतू पशु गाय आदि के जन्म व मरण के निमित्त से मात्र एक दिन का सूतक होता है। अनाचारी व्यक्ति के घर सदाकाल सूतक । चक्रवर्ती आदि महापुरुषों को सूतक नहीं लगता। सामान्यतः सूतक काल में गृहस्थ के द्वारा देवपूजा, आहार दान आदि कार्य नहीं किया जाता। जिस वंश वाला व्यक्ति जिनबिम्ब प्रतिष्ठा करा रहा है उसके वंश, कुल गोत्र में उस दिन से अशुचि नहीं मानी जाती अर्थात् जिस दिन नान्दी अभिषेक हो गया उस दिन से उस कुल में सूतक नहीं लगता।