साधक श्रावक
जो श्रावक आनन्दित होता हुआ जीवन के अंत में अर्थात् मृत्यु समय, शरीर, भोजन और मन, वचन, काय के व्यापार के त्याग से पवित्र ध्यान के द्वारा आत्मा की शुद्धि की साधना करता है, वह साधक कहा जाता है। जिसमें सम्पूर्ण गुण विद्यमान है, जो शरीर का कांपना, उच्छवास लेना, नेत्रों का खोलना आदि क्रियाओं का त्याग कर रहा है और जिसका चित्त लोक के ऊपर विराजमान सिद्धों में लगा हुआ है, ऐसे समाधिमरण करने वाले का शरीर परित्याग करना साधकपना कहलाता है।