समाचार
साधुओं के द्वारा परस्पर जो विनय आदि व्यवहार किया जाता है उसे समाचार या समाचारी कहते हैं। अथवा सभी साधुओं का जो एक समान अहिंसा आदि रूप आचरण है उसे समाचार कहते हैं। समाचार दो प्रकार का है- औघिक व पदविभागी। औघिक समाचार के दश भेद हैं- इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आसिका, निषेधिका आपृच्छा प्रतिपृच्छा, छेदन, सन्निमन्त्रणा, और उपसंपत। शुभ भावों में हर्ष इच्छाकार या संयम, ज्ञान व तप आदि के उपकरणों में तथा आतापनादि योगों में मन को लगाना इच्छाकार है, जो व्रतादि में मेरे अतिचार (दोष) लगा हो वह मिथ्या होवे ऐसा अंतरंग भाव से प्रतिक्रमण करना मिथ्याकार है, सूत्र का अर्थ सुनकर तथेति कहना तथाकार है अथवा जीवादि तत्वों के व्याख्यान को सुनना सिद्धान्त ग्रंथों का श्रवण करना, परम्परा से चला आ रहा उपदेश और सूत्र आदि का अर्थ इनमें जो अर्हन्त ने कहा वह सत्य है ऐसा समझना तथाकार है, गिरि गुफा आदि स्थान में पूछकर प्रवेश करना निषेधिका, रहने के स्थान से निकलते समय पूछकर निकलना आसिका है, आतपनादि ग्रहण में, आहारादि की इच्छा में तथा अन्य ग्रामादि को जाने में गुरु से नमस्कार पूर्वक पूछकर उनके अनुसार करना आपृच्छा है, साधर्मी या गुरु आदि से पहले दिए हुए उपकरणों को पूछकर ग्रहण करना प्रतिपृच्छा है अथवा जो कुछ महान कार्य करना हो उसे गुरु आदि से पूछकर करना फिर अन्य साधर्मी साधुओं से भी पूछना प्रतिपृच्छा है। ग्रहण किए हुए पुस्तक आदि उपकरणों में, विनय के काल में, वन्दना – सूत्र को अर्थ को पूछना आदि कार्य में आचार्य की इच्छा के अनुकूल प्रवृत्ति करना छेदन है या उपकरणों को जिससे लिया है उसके अभिप्राय के अनुकूल प्रवृत्ति करना छेदन है, गुरु या साधर्मी के पुस्तक, कमण्डलु आदि लेना हो तो उनसे विनयपूर्वक याचना करना निमन्त्रणा है, अपने गुरु के कुल में सभी के प्रति मैं आपका हूँ ऐसा कहकर आचरण करना उपसंयत है। यह पाँच प्रकार की है- अन्य संघ से आए मुनियों की कुशलक्षेम पूछना, आसनादि देना उनके गुरु के विराजने का स्थान पूछना, आगमन का रास्ता पूछना, पुस्तकादि उपकरण देना, विनयोपसंयत है, जिस स्थान में रहने से संयम, तप, व्रत, शील, यम, नियम आदि में वृद्धि होती है उस स्थान में रहना क्षेत्रोपसंयत है, अपने संघ से आए मुनि एवं अपने स्थान में रहने वाले मुनियों से आपस में आने-जाने के विषय में कुशल-क्षेम पूछना मार्गोपसंयत है, साधर्मी मुनियों को वसतिका आहार, औषध आदि का उपकार करना तथा मैं और मेरी वस्तुएँ आपकी हैं ऐसा वचन कहना सुखदुखोपसंयत है, सूत्र वाक्यों का पठन-पाठन विनय पूर्वक करना सूत्रोपसंयत है। वह तीनों प्रकार का है- सूत्र, अर्थ व तदुभय। जिस समय सूर्य उदय होता है वहाँ से लेकर समस्त दिन-रात की परिपाटी में मुनि लोग नियम आदि को निरन्तर आचरण करें यह प्रत्यक्ष रूप पद विभागी समाचार है।