सन्निपातिक भाव
सान्निपातिक नाम का एक स्वतन्त्र भाव नहीं हैं संयोग भंग की अपेक्षा उसका ग्रहण किया। जैसे औदायिक औपशमिक मनुष्य और उपशान्त क्रोध जीव भाव सान्निपातिक है। एक ही गुणस्थान या जीवसमास में जो बहुत से भाव आकर एकत्रित होते है, उन भावों की सन्निपातिक ऐसी संज्ञा है। सन्निपातिक भाव दो संयोगी तीन, चार तथा पाँच संयोगी क्रम से 10,10, 5 तथा 1 इस प्रकार छब्बीस बताए हैं। सन्निपातिक भाव 26, 36 और 41 आदि प्रकार के आगम में बताये गये हैं।
सन्निपातिक भाव
एक ही गुणस्थान या जीव समास में जो बहुत से भाव आकर एकत्रित होते हैं उन भावों को सन्निपातिक भाव कहते हैं सन्निपातिक नाम का कोई एक स्वतंत्र भाव नहीं है संयोगज भंग की अपेक्षा इसका ग्रहण किया गया है। जैसे औदयिक+औपशमिक = मनुष्य और उपशान्त क्रोध यह सन्निपातिक भाव है। सन्निपातिक भाव दो संयोगी, तीन, चार और पाँच संयोगी क्रम से दस, दस, पाँच और एक इस प्रकार छब्बीस बताए हैं। इनकी संख्या छत्तीस है, इकतालीस भी आगम में वर्णित है।