सद्भूत व्यवहार नय
एक वस्तु को विषय करने वाला सद्भूत व्यवहार नय रूप है । गुण और गुणी में भेद अवस्था करके कथन करने वाला सद्भूत व्यवहार नय है। सद्भूत व्यवहार नय दो प्रकार का है- उपचरित और अनुपचरित । शुद्ध गुण और शुद्ध गुणी में अथवा शुद्ध पर्याय व शुद्ध पर्यायी में भेद को विषय करना शुद्ध सद्भूत या अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय है। जैसे- केवलज्ञान आदि जीव के गुण है। अशुद्ध या उपाधिसहित गुण और गुणी में भेद का कथन करना अशुद्ध सद्भूत या उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है। जैसे- मतिज्ञान आदि जीव के है। जीवात्मा किसी को दिखाई नहीं देती गुण किन्तु उसकी जानने देखने की शक्ति या गुण सबके आत्मा अनुभव में आते हैं इसलिए गुण के माध्यम के स्वरूप और अस्तित्व का बोध कराने के लिए गुण का कथन गुणी से अलग करके करने की यह पद्यति अपनायी जाती है यही इस नय या कथन पद्यति का प्रयोजन है।