संसारानुप्रेक्षा
संसार में परिभ्रमण करता हुआ जीव कर्म से प्रेरित होकर रंगभूमि में अभिनय करने वाले अभिनेता के समान अनेक रूपों को धारण करता है। किसी का पिता होकर लान्तर में उसी जीव का भाई, पुत्र और पौत्र भी होता है। किसी की माता होकर फिर उसी जीव की बहन, पत्नी व पुत्री भी होता है। किसी का स्वामी होकर बाद में उसका दास और दास होकर स्वामी भी होता है। इस प्रकार परिभ्रमण करके कहीं सुख नहीं पाता, ऐसा संसार के स्वभाव का बार-बार चिन्तन करना संसारानुप्रेक्षा है।