श्रेणी
लोक के मध्य से लेकर ऊपर नीचे और तिरछे क्रम से स्थित आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं । इस प्रकार श्रेणी का अर्थ पंक्ति है। इस श्रेणी शब्द का प्रयोग अनेक स्थानों पर किया गया है जैसे- राज सेना की अठारह श्रेणियाँ, स्वर्ग व नरक के श्रेणीबद्ध विमानों व बिल, आत्म-ध्यान में लीन साधु की उपशम व क्षपक श्रेणी आदि । जहाँ मोहनीय कर्म का उपशम करता हुआ साधक आगे बढ़ता है वह उपशम श्रेणी है और जहाँ मोहनीय कर्म का क्षय करता हुआ आगे जाता है वह क्षपक श्रेणी है। अप्रमत्त संयत के आगे के चार गुणस्थानों की दो श्रेणियाँ हो जाती हैं- उपशम श्रेणी एवं क्षपक श्रेणी । जिसके आयुबंध नहीं हुआ हो वही क्षपक श्रेणी पर चढ़ता है। बद्धायुष्क जीवों के क्षपक श्रेणी पर आरोहण संभव नहीं है। जिसने दर्शनमोहनीय का क्षय नहीं किया है वह भी क्षपक श्रेणी पर नहीं चढ़ सकता । इसलिए सम्यग्दर्शन की अपेक्षा क्षपक के क्षायिक भाव होता है उपशम श्रेणी पर चढ़ने वाले जीवों से क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाले जीव दुगने होते हैं उपशम श्रेणी वाला औपशमिक एवं क्षायिक इन दोनों भावों से युक्त है क्योंकि दोनों ही सम्यक्त्वों से उपशम श्रेणी का चढ़ना सम्भव है उपशम श्रेणी चढ़ने वाले उपशान्त कषाय का आयु के क्षय से मरण हो सकता है या फिर कषायों की उदीरणा होने से नीचे गिर जाता है इस प्रकार उपशान्त कषाय से प्रतिपात दो प्रकार से है- एक आयु क्षय से, दूसरा कालक्षय से । उपशम श्रेणी से नीचे उतरे हुए जीव के वेदक सम्यक्त्व को प्राप्त हुए बिना पहले वाले उपशम सम्यक्त्व के द्वारा पुनः उपशम श्रेणी पर आरोहण संभव नहीं है ।