शुद्ध नय
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शुद्ध तत्त्व वचन के अगोचर है ऐसे शुद्ध तत्त्व को ग्रहण करने वाला नय शुद्धादेश है। शुद्ध नय की अपेक्षा जीव एक और शुद्ध है। शुद्ध नय की अपेक्षा न उत्पाद है और न व्यय है ओर न ध्रौव्य है केवल सत् है। शुद्ध नय से आत्मा केवल मिट्टी मात्र की भांति शुद्ध स्वभाव वाला है।
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