शुद्ध द्रव्यार्थिक नय
शुद्ध द्रव्य ही है अर्थ और प्रयोजन जिसका सो शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। जो शुद्ध द्रव्य के अर्थरूप से आचरण करता वह शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। जो सत्ता आदि की अपेक्षा से पर्याय रूप कलंक का अभाव होने के कारण सबकी अद्वैतता को विषय करता है वह शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। जो नय आत्मा को बन्ध से रहित और पद के स्पर्श से रहित अन्यत्व रहित चलाचलता रहित, विशेष रहित, अन्यों के संयोग से रहित ऐसे पाँच भाव से देखता है उसे हे शिष्य तू शुद्ध नय जान ।