व्रतारोपण योग्यता
जिसको जीवों का स्वरूप मालूम हुआ है, ऐसे मुनि को नियम से व्रत देना यह व्रतारोपण नाम का छठा स्थितिकल्प है। पूर्ण निर्ग्रन्थ अवस्था धारण की है, उद्देशिक आहार और राजपिंड का त्याग किया है, जो गुरुभक्त और विनयी है, वह व्रतारोपण के योग्य है । व्रत देने का क्रम इस प्रकार है – जब गुरु बैठते हैं, आर्यिकाएँ सम्मुख होकर बैठती है, ऐसे समय में श्रावक और श्राविकाओं को दी जाती है। व्रत धारण करने वाला मुनि भी गुरु के वांयी तरफ बैठता है, तब गुरु उसको व्रत देते हैं। व्रतों का स्वरूप जानकर और श्रद्धा करके पापों से विरक्त होना व्रत है, इसलिए गुरु उसे पहले व्रतों का उपदेश देते हैं।