व्युच्छित्ति
व्युच्छित्ति का अर्थ व्युच्छेद या विनाश है । जैसे— मिथ्यात्व गुणस्थान में सोलह कर्म-प्रकृतियों का बंध व्युच्छित्ति होती है। अर्थात इन सोलह प्रकृतियों का बन्ध प्रथम गुणस्थान तक ही होता है आगे नहीं। इसी प्रकार उदय व्युच्छित्ति का भी अर्थ किया गया है। जैसे— मिथ्यात्व आदि पाँच प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति प्रथम गुणस्थान में होती है अर्थात् द्वितीय आदि गुणस्थान में इनका उदय नही रहता ऐसा आशय है प्रथम गुणस्थान के 16, द्वितीय में 25, तृतीय में शून्य, चतुर्थ में 10, पंचम में 4, षष्ठ में 6, सप्तम में 1, अष्टम में 36, नवम में 5, दशम में 16, एकादश व द्वादश में शून्य, त्रियोदश में 1 प्रकृति की बन्ध व्युच्छित्ति होती है। चतुद्रश गुणस्थान में बन्ध और बन्धी व्युच्छित्ति कुछ भी नहीं है। अभेद विवक्षा से मिथ्यादृष्टि आदि चौदह गुणस्थानों में क्रम से 10, 4, 1, 17, 8, 5, 4, 6, 6, 1, 2, ( 2,14 ) 20 और 13 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।