व्यभिचार
अतत् को तत् रूप से ग्रहण करना व्यभिचार है अथवा जो हेतु पक्ष, विपक्ष और समक्ष तीनों में रहे उसे व्यभिचारी हेत्वाभास या अनैकान्तिक कहते हैं। यह दो प्रकार का है- निश्चित विपक्षवृत्ति और शंकित विपक्षवृत्ति । जो हेतु विपक्ष में निश्चित रूप से रहे उसे निश्चित विपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते है। जैसे— यह प्रदेश धूमवाला है क्योकि वह अग्निवाला है यहाँ ‘अग्नि’ हेतु पक्षभूत संदिग्ध धूमवाले सामने के प्रदेश में रहता है और सपक्ष रसोईघर में रहता है तथा विपक्ष धूमरहित रूप से निश्चय है। जो हेतु विपक्ष में संशयरूप से रहे उसे शंकित वृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते है। जैसे— गर्भस्थ मैत्री का पुत्र श्याम होना चाहिए क्योंकि मैत्री का पुत्र है दूसरी मैत्री के पुत्रों की तरह।